कनिष्क की जीवनी और इतिहास Biography of kanishka and history
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख कनिष्क की जीवनी और इतिहास (History and biography of kanishka) में। दोस्तों इस लेख में आप कनिष्क कौन था?
कनिष्क की तिथि, कनिष्क के युद्ध एवं विजय, कनिष्क की उपलब्धियाँ, आदि के बारे में जान पायेंगे। तो आइये दोस्तों करते है यह लेख शुरू कनिष्क की जीवनी और इतिहास:-
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कनिष्क कौन था who was kanishka
कनिष्क कुषाण वंश (Kushan Dynasty) का सबसे प्रतापी और महान शासक था, जिसे कनिष्क प्रथम के नाम से जाना जाता था। कनिष्का किसका पुत्र है? इस विषय में अभी तक विद्वान एकमत नहीं हुए है।
किंतु कनिष्क का प्रादुर्भाव कुषाण वंश के लिए महत्वपूर्ण रहा था। कुषाण वंश के शासक विम कैडफिसेस की मृत्यु के बाद कुषाण वंश के साम्राज्य पर संकट के बादल छा गए थे।
कियोकि विम कैडफिसेस के बाद कोई भी कुषाण शासक योग्य सम्राट नहीं हुआ। कुछ वर्षो बाद कुषाण वंश के सूर्य कनिष्क का उदय हुआ।
जिसके माता पिता आदि के बारे में अधिक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए। कनिष्क का विम कैडफिसेस से क्या सम्बन्ध है? इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
स्टेनकोनो ने कहा की कनिष्क छोटी यू-ची शाखा का था, किन्तु इतिहासकारों ने बताया कि यह शाखा तो बर्बर जातियों से समाप्त हो चुकी थी।
इसलिए विद्वानो का मत है, कि कनिष्क विम कैडफिसेस (Vim Kadfises) के अधीन ही किसी प्रान्त का शासक रहा होगा।
कनिष्क की तिथि Kanishka ki tithi
तृत्तीय शताब्दी कनिष्क की तिथि के मध्य विद्वानो के बीच मतभेद है। डॉ. मजूमदार कहते है, कि कनिष्क 248 ई. में सिंहासन पर बैठा था।
किन्तु भण्डारकर कनिष्क कि तिथि 278 ई. मानते है। द्वीतीय शताब्दी कनिष्क के सिंहासन पर बैठने की तिथि मार्शल, स्मिथ आदि ने 125 अथवा 144 ई. बताई है।
जबकि प्रथम शताब्दी में कनिष्क की तिथि फ्लीट और केनेड़ी ने 58 ई.पू. और विक्रम संवत की स्थापना बताई है। कनिष्क की तिथि 78 ई. फरगूसन,
राखलदास बनर्जी, आदि इतिहासकारों ने बताई है। तथा यह भी बताया कि 78 ई. के शक-संवत का प्रारम्भ भी कनिष्क ने किया था।
कनिष्क के युद्ध एवं विजय Kanishka ke yudh and vijay
कनिष्क कुषाण वंश का एक प्रतापी और महान शासक (Ruler) था। कनिष्क ने ही कुषाण सत्ता को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया था।
क्योंकि कनिष्क एक कुशल योद्धा सेनापति और वीर व्यक्ति था। कनिष्क ने भारतीय प्रदेशों पर अधिकार करने के साथ ही चीन के कुछ भाग पर भी राज्य किया
पार्थिया से युद्ध Parthiya se yudha
चीनी ग्रंथो से जानकारी प्राप्त होती है, कि पार्थिया के शासक ने ही कनिष्क पर आक्रमण किया था, कियोकि पार्थिया का शासक बैक्ट्रीया और एरियाना प्रदेश पर अधिकार करना चाहता था,
इन क्षेत्रों पर कुषाण वंश का अधिकार था, किन्तु कनिष्क की सेना और युद्ध कौशल का सामना पार्थिया का शासक नहीं कर सका और बुरी तरह पराजित हुआ।
चीन से युद्ध Cheen se yudha
कनिष्क के समय चीन में हान वंश का शासन था, जो शक्तिशाली वंश था। उसके अधिकार में खेतान, काशगर, कुचा जैसे प्रदेश आते थे।
चीनी सेनापति पान- चाओ ने चीनी तुर्कीस्तान पर भी अधिकार कर लिया था। इसका यकीन वंश की सीमाएं कुषाण वंश के साम्राज्य से मिलने लगी थी।
कुषाण शासक कनिष्क ने चीनी साम्राज्य से अपने संबंध स्थापित करने के लिए चीनी शासक की बेटी से विवाह करने के उद्देश्य से चीनी शासक के दरबार में अपना एक राजदूत भेजा।
किंतु चीनी शासक ने इसे अपना अपमान समझा और उसे बंदी बना लिया। तभी कनिष्क ने 70.000 अश्वारोही चीन पर आक्रमण के लिए भेज दिए
किन्तु मौसम खराब होने के कारण सेना का एक बड़ा भाग नष्ट हो गया और बाकी सेना को चीनी सेना ने पराजित कर दिया।
इस पराजय से कनिष्क को चीनी शासक को प्रतिवर्ष कर देना पड़ता था, किंतु हवेनसांग में वर्णन किया है, कि कनिष्क ने चीनी साम्राज्य से अपना बदला ले लिया था।
कनिष्क का शासन खोतान काशगर और यारकंद तक पहुंच फैल गया था और चीनी शासकों ने कनिष्क के आगे समर्पण कर दिया था। इस प्रकार का वर्णन हवेनसांग के ग्रंथो के आलावा अन्य ग्रंथों में कहीं नहीं मिलता।
कनिष्क की उपलब्धियाँ kanishka ki uplabdhiyan
कनिष्क की कई ऐसी उपलब्धियाँ (Achievment) है, जिनके कारण कुषाण वंश महान और पराक्रमी राजवंश के रूप में जाना जाता है। कनिष्क की कुछ उपलब्धियाँ निम्नप्रकार है:-
बौद्ध धर्म की उन्नति Advancement of buddhism
कनिष्क ने बौद्ध धर्म (Buddhism) को संरक्षण दिया और उसको प्रोत्साहन दिया जिस कारण कनिष्क की क्या थी चारों दिशाओं में फैल गई।
कनिष्क के प्रारंभ में एक रक्त पिपासु शासक था, किंतु बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उसने पश्चाताप किया और नम्र दयालु शासक बन गया।
कनिष्क ने बौद्ध धर्म अश्वघोष बौद्ध भिक्षु के प्रभाव में आकर ग्रहण किया था। कनिष्क ने मठ, चैत्य, स्तूप आदि का निर्माण कराया और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया।
कनिष्क ने पुरुषपुर मथुरा तक्षशिला कई स्थानों पर बौद्ध स्तूपों निर्माण कराया। उसने मध्य एशिया चीन तिब्बत जापान आदि कई जगह पर बौद्ध भिक्षुओं को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भेजा।
चतुर्थ बौद्ध संगीति Fourth Buddhist Council
चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किसके शासनकाल की सबसे प्रमुख घटना मानी जाती है। कनिष्क ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के मध्य विवाद को समाप्त करने के लिए चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया था।
जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र के द्वारा की गई तथा उपाध्यक्ष अश्वघोष को बनाया गया। बौद्ध संगीति कश्मीर कुंडल वन में आयोजित की गई थी, जिसमें लगभग 500 बौद्ध विद्वान उपस्थित थे।
चतुर्थ बौद्ध संगीति लगभग 6 महीने तक चली इसमें बौद्ध साहित्य की जांच की गई भाव बाधा के मध्य चल रहे वाद विवाद को समाप्त किया गया।
बौद्ध ग्रंथों त्रिपिटकों पर टीका लिखी गई, जिसे महाविभाष तथा बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है।
साहित्यिक उन्नति literary advancement
कनिष्क के शासन काल में साहित्यिक उन्नति भी अपने चरम सीमा पर थी। उनके दरबार में कई विद्वान (Scholar) रहा करते थे।
बुद्धचरित और सौन्दरनन्द जैसे काव्यों के लेखक अश्वघोष, शून्यवाद तथा सापेक्षवाद के प्रवृतक और भारत के आइंस्टीन कहे जाने वाले विद्वान नागार्जुन के साथ वसुमित्र, तथा आयुर्वेद के
जन्मदाता और चरक संहिता के रचयिता चरक कनिष्क के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। कनिष्क का शासनकाल साहित्यिक उन्नति की दृष्टि से हमेशा फलता फूलता रहा।
कला और व्यापारिक उन्नति Arts and Business Advancement
कनिष्क के साम्राज्य में बैक्ट्रीया चीन का कुछ भाग, भारत अफगानिस्तान आदि शामिल थे। इसलिए कनिष्क के शासन काल में व्यापार चरमोत्कर्ष पर था।
व्यापार के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई। भारत से विभिन्न प्रकार के रत्न वस्त्र, खाद्यान का निर्यात होता था, तथा सोना भारत आता था।
इस संबंध में रोमन साम्राज्य से भी अच्छे थे, इसलिए रोमन साम्राज्य से व्यापारिक संबंध भी मजबूत होते गए। कनिष्क के साम्राज्य में व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे थे। वही कला भी विकसित हो रही थी।
बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण होने लगा, जो गंधार में होता था इसलिए उसे गंधार कला (Gandhara Art) कहा गया। बोधिसत्वों की पूजा होने लगी बौद्ध भिक्षुओं को सम्मान और महत्व प्राप्त हुआ।
कनिष्क की मृत्यु death of kanishk
इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने 23 अथवा 45 वर्ष राज्य किया था, किन्तु उसने अपने शासनकाल में युद्ध और रक्तपात को अधिक महत्व दिया, जिस कारण उसके सेनापति उसके खिलाफ थे, और षणयंत्र बनाकर कनिष्क की हत्या कर दी।
दोस्तों इस लेख में आपने कनिष्क की जीवनी तथा इतिहास (History and biography of kanishka) पड़ा। आशा करता हुँ आपको यह लेख पसंद आया होगा।
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