बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे / बौद्ध धर्म का इतिहास who was the founder of buddhism




बौद्ध धर्म के संस्थापक / बौद्ध धर्म का इतिहास who was the founder of buddhism

हैलो दोस्तों आपका बहुत बहुत स्वागत है। इस लेख बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे / बौद्ध धर्म का इतिहास (Who was the founder of buddhism) में, दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप बौद्ध धर्म क्या है,

बौद्ध धर्म के संस्थापक, बौद्ध धर्म के सिद्धांत, बौद्ध धर्म संगीतियाँ के साथ ही बौद्ध धर्म ग्रंथों के बारे में जान पायेंगे। तो आइये दोस्तों करते है, यह लेख शुरू बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे:-

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बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन

बौद्ध धर्म क्या है what is buddhism

बौद्ध धर्म (Buddhism) का उदभव श्रमण परंपरा से हुआ है, ऐसी मान्यता है, कि बौद्ध धर्म छठवीं सदी का ज्ञान और दर्शन का धर्म है।

बौद्ध धर्म का संस्थापक (Founder) और प्रवर्तक महात्मा बौद्ध है। बौद्ध धर्म इसाई धर्म के बाद दुनियाँ का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।

बौद्ध धर्म को कई शासकों ने संरक्षण दिया तथा उसका प्रचार - प्रसार दुनियाँ के हर क्षेत्र में किया। आज के समय बौद्ध धर्म के दुनियाभर में 2 अरब से अधिक अनुयायी (Followers) है।

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बौद्ध धर्म के संस्थापक founder of buddhism

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे, जो कपिलवस्तु के महाराज शुद्दोधन तथा महामाया के पुत्र थे। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसवी पूर्व में कपिलवस्तु के निकट ही एक ग्राम जिसे लुंबिनी के नाम से जाना जाता है

में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। गौतम बुद्ध का बचपन से ही भोग विलास की वस्तु तथा राजकाज में मन नहीं लगता था।

उनके ह्रदय में सभी जीवों के लिए प्रेम करुणा और दया के भाव कूट -कूट कर भरे थे। गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा नामक एक सुंदर कन्या से हुआ था।

तथा उनसे उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिनका नाम राहुल था, किंतु उनमें अचानक एक वृद्ध एक तपस्वी तथा एक मृत व्यक्ति को देखकर वैराग्य उत्पन्न हो गया

और वे आधी रात को ही 29 वर्ष की अवस्था में घर त्याग कर वनवास चले गए,जहाँ उन्होंने घोर कष्ट उठाए तथा सत्य की खोज में आगे बढ़ते गए

और अंततः सत्य प्राप्ति करके उन्हें बुद्धत्व सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति निरंजना नदी के किनारे उरुवेला नामक स्थान पर प्राप्त हुई और वह बुद्ध कहलाए।

महात्मा बुद्ध के द्वारा पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया गया था, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है, जबकि महात्मा बुद्ध की मृत्यु 483 इस्वी पूर्व में

जब वें 80 वर्ष के हुए थे तब मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनारा में हुई थी। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से भी जाना जाता है। 

बौद्ध धर्म के सिद्धांत principles of buddhism

बौद्ध धर्म (Buddhism) के प्रमुख सिद्धांत और शिक्षाएँ निम्न प्रकार से हैं:-

चार आर्य सत्य 

गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य का उपदेश दिया था। उन्होंने कहा था, कि यह चार आर्य सत्य ही जीवन के गूंढ़ सत्य है। गौतम बुध के द्वारा दिए गए चार आर्य सत्य निम्न प्रकार से हैं:- 

  1. दुख - महात्मा बुद्ध ने कहा है, कि यह संसार दुखमय है जिसे प्रत्येक प्राणी मात्र को स्वीकार करना ही होगा।
  2. दुख का कारण - संसार दुखमय है और संसार में उपस्थित सभी प्रकार की भोग विलास की वस्तुयें दुख का कारण है। महात्मा बुद्ध के द्वारा तृष्णा और वासना को ही दुख का कारण माना जाता है।
  3. दुख का नाश - गौतम बुद्ध ने कहा है, कि मेरे द्वारा दिए गए अष्टांगिक मार्ग पर चलने से दुख का नाश संभव है।
  4. दुख नाश का मार्ग - भगवान बुद्ध द्वारा दिए गए अष्टांगिक मार्ग ही दुख नाश का मार्ग है। अगर व्यक्ति तृष्णा, लालसा और सांसारिक भोग विलास की वस्तुओं का नाश करता है, तो वह दुख का नाश अवश्य कर सकता है।

अष्टांगिक मार्ग

गौतम बुद्ध अपने द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग पर चलने के लिए प्राणियों को आदेश देते हैं और कहते हैं, जो भी व्यक्ति इन बताए गए आठ मार्गों का दृढ़ता से और धैर्य पूर्वक पालन करता है।

वह संसार के दुखों से मुक्ति पा लेता है, और मोक्ष प्राप्त करता है। महात्मा बुद्ध द्वारा बताये गये आठ मार्ग, जिन्हें अष्टांगिक मार्ग के नाम से जाना जाता है, वह निम्न प्रकार से हैं:- 

  1. सम्यक दृष्टि - गौतम बुद्ध ने कहा है, कि जीव को कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में विचार अवश्य करना चाहिए, कि यह उसके लिए तथा अन्य प्राणियों के लिए उचित होगा या फिर अनुचित होगा।
  2. सम्यक संकल्प - प्रत्येक जीव को हिंसा, भेदभाव, कामना ईर्ष्या आदि दुर्गुणों को त्याग देना चाहिए और इनको त्यागने का संकल्प लेना चाहिए।
  3. सम्यक वचन - प्रत्येक जीव को चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए।
  4. सम्यक कर्म - हमेशा लोगों को सभी जीवो के प्रति अच्छे कार्य करना चाहिए। सभी जीवों के प्रति वासना रहित रहना चाहिए।
  5. सम्यक जीविका - प्रत्येक जीव को अपनी मेहनत से ही धन का अर्जन करना चाहिए और ईमानदारी से कार्य को करना चाहिए।
  6. सम्यक व्यायाम - प्रत्येक जीव को परिश्रम करना चाहिए और परिश्रम युक्त जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  7. सम्यक् स्मृति - जीव मात्र को अपने शरीर मन वचन संबंधित सभी प्रकार की चिंताओं के प्रति जागरूक होना चाहिए।
  8. सम्यक समाधि - प्रत्येक जीव को अपने चित्त, मन को शांत रखने के लिए एकाग्रता बनाए रखने के लिए ध्यान तथा समाधि का उपयोग भी करना चाहिए। 

दस शील आचरण

महात्मा बुद्ध ने प्रत्येक व्यक्ति के नैतिक आचरण को विशेष स्थान दिया है, और उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति की नैतिकता को निखारने के लिए निम्न प्रकार के

10 वचन दिए हैं, जिनमें सत्य, अहिंसा, चोरी ना करना, धन का संग्रह ना करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, नृत्य और गायन का त्याग करना,

सुगंधित पदार्थों का त्याग कर देना, असमय भोजन ना करना, कोमल सैय्या को त्यागना तथा कामनी एवं कंचन का त्याग करना समाहित किया गया है।

ईश्वर और आत्मा में अविश्वास

बौद्ध धर्म ईश्वर तथा आत्मा में विश्वास नहीं करता है। बौद्ध धर्म कहता है, कि ईश्वर जैसी कोई भी सत्ता इस दुनिया में नहीं है, जबकि बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध आत्मा के प्रश्न पर भी मौन ही रहे थे।

पुनर्जन्म में विश्वास

बौद्ध धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांतों को मान्यता देता है, जैन धर्म की तरह बौद्ध धर्म भी बताता है, कि व्यक्ति कर्मों के अनुसार जन्म लेता है, जब तक उसके कर्मफल पूर्ण नहीं होते तब तक वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त नहीं हो सकता।

निर्माण प्राप्ति

बौद्ध धर्म के अनुसार जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही निर्माण या मोक्ष प्राप्ति कहलाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए गौतम बुद्ध ने आठ अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया है, जबकि चार आर्य सत्य भी निर्माण प्राप्ति के लिए सहायक सिद्ध होते हैं।

जाति पाती का विरोध

बौद्ध धर्म जाति पाती का विरोध करता है, बौद्ध धर्म सभी प्राणियों को एक समान मानता है और मानवता का समर्थक है, इसलिए सभी जाति वर्ग के लोगो के लिए उसके दरवाजे हमेशा खुले रहते है।

बौद्ध धर्म के ग्रंथ Buddhist scriptures

बौद्ध धर्म ग्रंथों की रचना पाली भाषा में हुई है। बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक सबसे महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथ माना जाता है, जो तीन प्रकार की रचनाओं से रचित है:-

  1. सुत्त पिटक  - सुत्त पिटक बौद्ध धर्म त्रिपिटक का ही एक अंग है, जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है।
  2. विनय पिटक - विनय पिटक भी त्रिपिटक का ही एक भाग है। जिसमें बौद्ध संघ के नियमों की व्याख्या की गई है।
  3. अभिधम्मपिटक - अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन पर प्रकाश डाला गया है।

बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक निकाय और जातक ग्रंथों से विभिन्न प्रकार की ऐतिहासिक जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। जबकि दीपवंश और महावंश नामक बौद्ध ग्रंथों से मौर्योत्तर कालीन जानकारी प्राप्त होती है।

जातक ग्रंथों में बुद्ध तथा उनके अनुयायियों तथा अन्य बोधिसत्वों के जीवन की चर्चा जबकि कथावस्तु नामक बौद्ध ग्रंथ में महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित कथाओं का वर्णन किया गया है। 

बौद्ध संघ Buddhist Sangha

महात्मा बुद्ध ने एक बौद्ध संघ की स्थापना की है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं को प्रवेश दिया जाता है। संघ में प्रवेश करने के लिए बौद्ध भिक्षुओं का उपसम्पदा संस्कार (Upsampda Sanskar) होता है।

जबकि जो भी व्यक्ति सांसारिक जीवन में रहते हैं, और बौद्ध धर्म को अपनाते हैं या उसके अनुयायी हैं उनको उपासक कहा जाता है।

बौद्ध धर्म में पहले महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। किंतु महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद और मौसी प्रजापति गौतमी के बार-बार कहने और आग्रह करने पर

महात्मा बुद्ध ने महिलाओं के लिए एक अलग बौद्ध संघ की स्थापना की जिसमें सबसे पहले उनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी बौद्ध संघ में प्रविष्ट हुई है।

बौद्ध धर्म संगीतियाँ Buddhist Congregations

बौद्ध धर्म की चार संगीतियाँ आयोजित की गई हैं। बौद्ध धर्म की प्रथम संगीति 483 ईसवी पूर्व राजगृह में शासक अजातशत्रु के द्वारा आयोजित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप ने की थी।

द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन 383 ईसवी पूर्व वैशाली में काला अशोक के द्वारा किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सर्वकामिन की थी।

तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन 250 ईसवी पूर्व पाटलिपुत्र में हुआ था। यह बौद्ध संगीति सम्राट अशोक के शासनकाल में मोगलीपुत्तिस्स की अध्यक्षता में संपन्न हुई थी।

जबकि चतुर्थ बौद्ध संगीति 72 ईसवी पूर्व में कुंडल वन कश्मीर में शासक कनिष्क के द्वारा वसुमित्र की अध्यक्षता में संपन्न कराई गई थी।

बौद्ध धर्म की शाखाएँ branches of buddhism

बौद्ध धर्म की शाखाएँ  - महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्माण के कई सालों तक बौद्ध भिक्षु उनकी शिक्षाओं को ही उनका पथ प्रदर्शक मानकर चलते रहे।

किन्तु फिर धीरे - धीरे बौद्ध भिक्षुयों के मध्य मतभेद उत्पन्न होने लगे और द्वितीय बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म की दो शाखाएँ बन गयी

थेर भिक्षुयों ने मतभेद करने वाले भिक्षुयों को निकाल दिया, जिन्होंने अपनी शाखा का निर्माण किया, जिसका नाम था महायान और थेर भिक्षुओं की शाखा का नाम हुआ हीनयान

हीनयान और महायान में अंतर Diffrence Heenyan or Mahayaan 

हीनयान शाखा - हीनयान व्यक्तिवादी धर्म था जिसका अर्थ था निम्न मार्ग इस संघ के लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तन नहीं चाहते थे। इनका मानना था बौद्ध धर्म जैसा है वैसा ही रहे।

हीनयान शाखा के लोग महात्मा बुद्ध को भगवान नहीं मानते थे वे उनकी पूजा केवल महापुरुष के रूप में करते थे उनका मानना था कि मोक्ष स्वयं के पुरुषार्थ से प्राप्त होता है।

हीनयान सम्प्रदाय का आदर्श वाक्य आत्मदीपो भव : है।

हीनयान शाखा श्रीलंका और अन्य देशो में फैली है, यह शाखा त्रिपिटक ग्रन्थ के सिद्धांतो पर बल दिया है। अन्त में हीनयान शाखा वैभाषिक और सर्वास्तीवादी है।

महायान शाखा - महायान शाखा के लोग नई विचारधारा के थे जो बौद्ध धर्म में परिवर्तन चाहते थे इस शाखा के लोग मानते थे कि ईश्वर अर्थात भगवान बुद्ध की कृपा से मोक्ष प्राप्त होगा।

हीनयान शाखा का आदर्श वाक्य बोधिसत्व है, यह शाखा चीन, जापान, कोरिया आदि देशो में फैली है।

दोस्तों इस लेख में आपने बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे (who was founder of buddhism) के साथ बौद्ध धर्म के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त की आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

FAQs For buddhism





Q.1. बौद्ध धर्म का भगवान कौन है?





Ans. बौद्ध धर्म का भगवान बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध









Q.2. बौद्ध धर्म में किसकी पूजा की जाती है?





Ans. बौद्ध धर्म में गौतम बुद्ध की पूजा और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण किया जाता है।









Q.3. बौद्ध धर्म में कितने देवता हैं?





Ans. बौद्ध धर्म किसी देवी देवता में विश्वास नहीं रखता है किन्तु बाद में बौद्ध भगवान गौतम बुद्ध को माना गया।







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